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सांविधानिक विधि
केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति
« »08-Sep-2023
"एक स्थायी निकाय के रूप में केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति सभी हितधारकों के हित में होगी।" उच्चतम न्यायालय |
स्रोत: iee
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक तदर्थ विशेषज्ञ पैनल को बदल दिया, जो वन और पर्यावरण से संबंधित मामलों पर उच्चतम न्यायालय की सहायता करता था और इसके स्थान पर एक नई केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) गठित कर दी है।
- यह वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 की घोषणा के बाद उठाया गया एक कदम है।
पृष्ठभूमि
- मई 2023 में, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 का पालन करते हुए, केंद्र सरकार से एक समिति को स्थायी वैधानिक निकाय बनाने के लिये उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक मसौदा पेश करने के लिये कहा था।
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- उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) को एक स्थायी वैधानिक निकाय के रूप में तैयार करने के कदम को "हितधारकों के हित में एक कदम" बताया।
- अगस्त 2023 में, उच्चतम न्यायालय ने मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत मसौदे की समीक्षा की और सरकार को केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति को एक स्थायी निकाय के रूप में गठित करने की अनुमति दी।
- केंद्र सरकार ने 5 सितंबर, 2023 को एक अधिसूचना जारी की जिसके अनुसार केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति के नए सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी और यह समिति अब पर्यावरण मंत्रालय को रिपोर्ट करेगी।
- इस अधिसूचना के जारी होने से पहले, यह समिति उच्चतम न्यायालय के समक्ष रिपोर्ट करने के लिये जवाबदेह थी।
- इस अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति का कोई सुझाव या सिफारिश राज्य या केंद्र सरकार को स्वीकार्य नहीं है, तो सरकार उसे स्वीकार न करने के लिये लिखित में कारण बतायेगी और केंद्र सरकार का ऐसा निर्णय अंतिम होगा।
केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति का इतिहास
- केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की स्थापना टी. एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ और अन्य (1997) के ऐतिहासिक मामले के बाद किया गया था।
- 1995 में शुरू किया गया यह मामला भारत के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में से एक, नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व के संरक्षण और परिरक्षण से संबंधित था।
- जटिल पर्यावरणीय मामलों के निर्णय में सहायता करने के लिये एक विशेष निकाय की आवश्यकता को पहचानते हुए उच्चतम न्यायालय ने 2002 में केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया।
- वर्ष 2008 में समिति का पुनर्गठन किया गया।
नई केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति का गठन
- संरचना:
- एक अध्यक्ष, सचिव और 3 विशेषज्ञ सदस्य समिति का गठन करेंगे।
- पिछली समिति में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के सदस्य भी शामिल थे जबकि यह नवगठित समिति एनजीओ सदस्यों की उपस्थिति को पूरी तरह से हटा देती है।
- योग्यता:
- अध्यक्ष के पास पर्यावरण, वानिकी या वन्यजीव क्षेत्रों या पर्याप्त प्रशासनिक अभ्यास में 25 वर्ष का अनुभव होना चाहिये।
- उनका कार्यकाल 3 साल का होगा।
- सचिव के पास पर्यावरण, वानिकी या वन्यजीव मामलों में 12 साल का अनुभव होना चाहिये और सरकार में उप महानिरीक्षक (डीआईजी) या निदेशक से कम रैंक नहीं होनी चाहिये।
- 3 सदस्यों, जिनमें से प्रत्येक पर्यावरण, वानिकी या वन्यजीव मामलों से है, के पास कम से कम 20 वर्ष का अनुभव होना चाहिये।
- अध्यक्ष के पास पर्यावरण, वानिकी या वन्यजीव क्षेत्रों या पर्याप्त प्रशासनिक अभ्यास में 25 वर्ष का अनुभव होना चाहिये।
केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति का प्रमुख योगदान
- इस समिति द्वारा वर्ष 2012 में गोवा में अवैध खनन के बारे में विस्तृत रिपोर्ट दी गई थी।
- इस समिति ने 2014 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें उड़ीसा राज्य में खनन पट्टों में पर्यावरण मंज़ूरी के बिना या पर्यावरण मंज़ूरी की अवधि समाप्त होने के बाद भी लौह अयस्क और मैंगनीज के उत्पादन के मसले पर ओडिशा सरकार की आलोचना की गई थी।
- इसने कर्नाटक में पश्चिमी घाट क्षेत्र में गैर-वन उपयोग के लिये वन भूमि के कथित अवैध विचलन के संबंध में कुद्रेमुख वन्यजीव फाउंडेशन और अन्य द्वारा उसके समक्ष दायर मामले की सूचना दी।
- इसने कर्नाटक के कैसल रॉक से गोवा के कुलेम तक रेलवे ट्रैक को दो लेन वाला ट्रैक बनाने की याचिका को खारिज कर दिया, जिसे मई 2023 में उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।